महर्षि संदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान और लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत व प्राकृत भाषा विभाग के तत्वावधान में एपीसेन प्रेक्षागृह में तीन दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वैदिक संस्कार की उपयोगिता विषयक इस संगोष्ठी की आरंभ वैदिक मंगलाचरण से हुआ। तीन दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन के प्रतिनिधि आकाश मिश्र और कुंजबिहारी पांडेय भी उपस्थित रहे।एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिमन्यु सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। डॉ. शतपथी ने विद्वतजनों को पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया। सत्र की अध्यक्षता कर रहे कुलपति आलोक राय ने कहा कि वेदों में हर चीज का वर्णन है। विश्वविद्यालय में वैदिक शोध होने चाहिए।
मुख्यातिथि जगतगुरु रामान्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रो. राम सेवक दुबे रहे। उन्होंने कहा जिसने वेद और वेदांगों का अध्ययन किया हो, वही व्यक्ति 16 संस्कारों को ग्रहण कर सकता है। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने कहा कि भारतीय संस्कृति वेदों में निहित है। संस्कृत का संरक्षण होना बहुत आवश्यक है। विशिष्ट अतिथि बेंसबाडा स्नातकोत्तर महाविद्यालय रायबरेली के डॉ. अमलधारी सिंह गौतम ने भी विचार रखे। कला संकाय के प्रो अरविंद मोहन ने कहा कि वेद में ज्ञान है, संस्कार है और जीवनशैली है। अमलधारी की वेद कल्पवृक्ष पुस्तक का विमोचन भी किया गया। डॉ. गौरव सिंह, डॉ. भुवनेश्वरी भारद्वाज, डॉ. बृजेश कुमार सोनकर, डॉ. ऋचा पाण्डेय तथा ज्योतिर्विज्ञान विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. विपिन कुमार पांडेय, डॉ. अनिल कुमार पोरवाल, डॉ. विष्णुकांत शुक्ल,डॉ. अनुज कुमार शुक्ल, डा. प्रवीण कुमार बाजपेयी, कोमल, नीरज, योगेश आदि उपस्थित रहे।