मॉस्को (मानवीय सोच) ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन का तनाव अब केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहा है। दुनिया के कई देश अब इसमें शामिल हो रहे हैं। नैन्सी पेलोसी के दौरे से पहले से ही चीन ने युद्ध की धमकी देना शुरू कर दिया था। पेलोसी की यात्रा के बाद अब चीन ताइवान को हर तरफ से घेरकर सैन्य अभ्यास करने में लगा है। इस मामले को लेकर जहां कई देशों ने चीन को गलत ठहराया है तो वहीं रूस खुलकर ड्रैगन के समर्थन में आ गया है। रूस ने अमेरिका पर ही तनाव बढ़ाने का आरोप लगाया है।
रूस बोल- उकसाने के लिए नैन्सी पेलोसी गई ताइवान
रूस की तरफ से कहा गया है कि चीन को एक संप्रभु राष्ट्र होने के चलते उसे ताइवान के पास बड़ा सैन्य अभ्यास करने का अधिकार है। क्रेमलिन के प्रवक्ता से जब चीन के सैन्य अभ्यास पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, यह चीन का सार्वभौमिक अधिकार है। ताइवान और इस क्षेत्र में तनाव नैन्सी पेलोसी की यात्रा की वजह से बढ़ा है। यह पूरी तरह से गैरजरूरी यात्रा थी और केवल उकसावे के लिए की गई थी।
चीन को सही ठहरा रहा पाकिस्तान
चीन के सदाबहार दोस्त पाकिस्तान ने भी वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करते हुए चीन का समर्थन किया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के तरफ से कहा गया कि दुनिया इस समय कोई दूसरा संकट झेलने को तैयार नहीं है। इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था और शांति को बड़ा नुकसान पहुंचेगा। बयान में कहा गया, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में आपसी सम्मान जरूरी है। किसी को आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। यूएन चार्टर के सिद्धातों को ध्यान रखते हुए द्विपक्षीय समझौतों का ध्यान रखना चाहिए।
क्या है ‘वन चाइना पॉलिसी’
वन चाइन पॉलिसी की बात करके चीन ताइवान पर अपने अधिकार का दावा करता है। दरअसल 1644 में चीन में शासन करने वाले शासक वंश चिंग ने चीन का एकीकरण किया था इस वंश ने 1911 तक शासन किया। 1949 में जब गृह युद्ध छिड़ा तो कम्युनिस्ट और क्यूओमिनटैंग की सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इसमें क्यूओमिनटैंग लोगों की पराजय हुई और फिर वे ताइवान चले गए और वहीं सरकार बना ली। अब दोनों ही तरफ से यह दावा किया जाता है कि वे पूरे इस क्षेत्र के अधिकारी हैं। चीन का कहना है कि ताइवान उसकी का विभाजित भाग है और एक दिन उसे मेनलैंड में शामिल करना है। वह ताइवान की चुनी हुई सरकार को मान्यता नहीं देता है। चीन हॉन्गकॉन्ग, तिब्बत और शिनजियांग को भी अपना ही क्षेत्र मानता है। चीन के दबाव के चलते अमेरिका समेत की देश ताइवान को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दे पाए।