तेल टैंकर ट्रैकिंग डेटा और इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मई में भारत का रूसी तेल आयात 10 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है, क्योंकि यूक्रेनी ड्रोन हमलों की वजह से रूस की तेल फैक्ट्री को नुकसान पहुंचा है और रूस ज्यादा से ज्यादा तेल बेचने पर मजबूर हो गया है। डेटा से पता चलता है, कि पिछले कुछ महीनों में भारत ने डिस्काउंट पर उपलब्ध रूसी तेल के आयात में भारी वृद्धि की है, जबकि भारत ने सऊदी अरब से तेल खरीदना काफी कम कर दिया है, लिहाजा सवाल उठ रहे हैं, कि करीब ढाई साल पहले सऊदी अरब ने भारत को जो आंख दिखाने की कोशिश की थी, क्या मोदी सरकार अभी भी उसे नहीं भूली है? रिकॉर्ड मात्रा में रूसी तेल खरीद रहा भारत कमोडिटी मार्केट एनालिटिक्स फर्म केपलर के शिप-ट्रैकिंग डेटा के मुताबिक, भारतीय रिफाइनर्स ने मई में कुल 1.96 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) रूसी कच्चे तेल का आयात किया है,
जो पिछले साल जुलाई के बाद से सबसे ज्यादा है, और अप्रैल में आयात की गई मात्रा से लगभग 3 प्रतिशत ज्यादा है। भारत लगातार पांच महीनों से रूसी तेल का आयात बढ़ाता जा रहा है, जो मई महीने में भी जारी रहा। दूसरी तरफ सऊदी अरब, जो एक वक्त भारत को तेल बेचने के मामले में दूसरे नंबर पर था, वो अब तीसरे नंबर पर आ गया है और भारत ने सऊदी अरब से तेल खरीदना काफी कम कर दिया है। भारत ने सऊदी से तेल आयात 13 प्रतिशत और कम कर दिया है और मई महीने में सऊदी से भारत ने सिर्फ 0.55 मिलियन बीपीडी ही तेल खरीदा है, जो पिछले साल सितंबर के बाद सबसे कम है। हालांकि गिरावट का मुख्य कारण रूसी कच्चे तेल की पर्याप्त उपलब्धता को माना जाता है, जो सऊदी के तेल के मुकाबले भारत के लिए सस्ता पड़ रहा है।
लेकिन, कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है, कि करीब ढाई साल पहले कोरोना संकट के बाद जब मोदी सरकार ने सऊदी अरब से तेल प्रोडक्शन बढ़ाने का बार बार आग्रह किया था, ताकि भारत में तेल की कीमत कम हो सके, उस वक्त सऊदी ने तेल का प्रोडक्शन नहीं बढ़ाया था। सऊदी अरब, तेल का प्रोडक्शन कम करके तेल की कीमत को बढ़ा रहा था, जिसका असर भारत पर गंभीर तौर पर पड़ रहा था और भारत के तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने उस वक्त सऊदी सरकार के ऊर्जा मंत्री से मुलाकात भी की थी, लेकिन सऊदी ने पेट्रोल का उत्पादन बढ़ाने से साफ मना कर दिया था और उसके बाद से ही भारत ने सऊदी का विकल्प तलाशना शुरू कर दिया था।