आइएनडीआइए के घटक दलों के बीच चल रही खींचतान के बीच कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट ने कहा है कि बेशक सीट बंटवारा एक चुनौती है, मगर इसमें कोई संदेह नहीं कि विपक्षी गठबंधन भाजपा-एनडीए के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ने का रास्ता निकलने पर सहमत है। कांग्रेस लचीला रूख दिखाने को तैयार है, मगर क्षेत्रीय दलों को भी राष्ट्रहित में कुछ कुर्बानी देने का दायित्व निभाना होगा।
वहीं, सचिन पायलट ने राजस्थान में हार के लिए अशोक गहलोत की ओर उंगली उठाते हुए अब टकराव को पीछे छोड़ लोकसभा चुनाव में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के लिए कमर कसने पर जोर दिया। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में कांग्रेस नेताओं के नहीं जाने से लेकर विपक्षी एकता के सामने गहराती चुनौती जैसे मुद्दों पर सचिन पायलट ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से खास बातचीत की।
पेश है इसके अंश
राजस्थान में चुनाव से पहले आपने कई तीखे सवाल उठाए तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आपको निकम्मा कहने से लेकर कई तरह के हमले किए पर कांग्रेस की हार से साफ है कि आपके उठाए कई मुद्दे सही साबित हुए फिर आपने इसे बर्दास्त क्यों किया।
राजस्थान में हमारी 30 साल की परिपाटी बदलने की कोशिश थी, लेकिन हम कामयाब नहीं हुए। जिन मुद्दों को मैंने उठाया वे जनता के सवाल थे और पार्टी भी इसका समाधान चाहती थी। इसमें कुछ पर कार्रवाई हुई पर कुछ मुद्दे रह गए। जहां तक चुनाव परिणाम की बात है तो हार या जीत दोनों किसी व्यक्ति की नहीं, बल्कि पार्टी की होती है।
सब कुछ भूलकर हमने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन मुझे लगता है कि कुछ और सीटिंग विधायकों के टिकट बदले गए होते तो नतीजे अलग होते, क्योंकि जहां भी युवा नए चेहरों को टिकट मिला जनता ने वहां कांग्रेस को समर्थन दिया।
बहरहाल इसे पीछे छोड़ हमारा फोकस राजस्थान में लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना है, क्योंकि बीते दो बार से पार्टी के लिए परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं और इस बार हम बेहतर नतीजों की उम्मीद कर रहे हैं।
आपकी जासूसी कराने की बात तो खुद गहलोत के ओएसडी ने भी कही तो क्या यह सच नहीं कि पायलट को किनारे लगाने की कलह में कांग्रेस की सियासत ठिकाने लग गई।
पार्टी में कोई अंर्तकलह नहीं थी, बल्कि कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे थे जिसका एआईसीसी ने संज्ञान लेकर कार्रवाई भी की। कुछ पर कार्रवाई होती उससे पहले चुनाव आ गए।
हमारे मुद्दे थे, हमने खुले तौर पर पार्टी और सरकार के हित में रखे थे। चुनाव हम जरूर हारे हैं, मगर राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के बीच केवल डेढ़ फीसद वोट का अंतर है और लोकसभा चुनाव में हम इसकी भरपायी करेंगे।
जहां तक अंतर्कलह की बात है तो भाजपा में जहां पहले से ही सीनियर-जूनियर का खिंचाव चल रहा और अब मंत्री बनने से लेकर विभागों को लेकर टकराव दिख रहा है।
पर क्या यह सच नहीं कि छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की हार ने विपक्षी आईएनडीआईए के 2024 चुनाव के एजेंडे को पटरी से उतार दिया है।
तीन राज्यों में हारे हैं तो तेलंगाना, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में हम जीते भी हैं। कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का अपना आधार है और सबका महत्व है। मगर यह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को कोई चुनौती दे सकता है तो वह कांग्रेस है।
सीट बंटवारे पर आईएनडीआईए में बिखराव दिख रहा, गठबंधन की एक बड़ी नेता ममता बनर्जी ने कांग्रेस से तालमेल नहीं करने की बात कही है तो जदयू सरीखे कुछ दल भी असहज हैं विपक्षी एकता कहां है।
सीट बंटवारे का मसला आसान नहीं, क्योंकि हर पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन की रक्षा करना चाहती है, जो स्वाभाविक भी है। ऐसे में बातचीत कर एक दूसरे को गुंजाइश देते हुए हल निकल सकता है। ममता बनर्जी गठबंधन का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और कांग्रेस नेतृत्व के साथ आपसी बातचीत में मिलकर चुनाव लड़ने का बेहतर रास्ता निकल जाएगा।
कोई भी दल अपना स्पेस दूसरे को नहीं देना चाहेगा, पर राष्ट्रहित में सभी घटक दलों को कुछ कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे। सीटों के बंटवारे में कुछ लेन-देन कर सभी को कुर्बानी देने का दायित्व निभाना होगा। आईएनडीआईए देश की संस्थाओं और लोकतंत्र को बचाने के लिए बना है इसमें व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा आड़े नहीं आएगी।
न्याय यात्रा के दौरान असम में तो राहुल गांधी को शंकर देव मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया और उनकी यात्रा पर हमले को लेकर जारी सियासी विवाद क्या यह इस तरह का संकेत नहीं।
असम के मुख्यमंत्री का आचरण कायरता का प्रतीक है, क्योंकि न्याय यात्रा पहले से तय है जिसे निजी प्रतिशोध के कारण अव्यवस्थित करने का प्रयास हुआ और पुलिस प्रशासन के जरिए उन्होंने इसके लिए हिंसा का सहारा लिया।
न्याय यात्रा किसी के खिलाफ नहीं, लोगों को जोड़ने के लिए है, मगर असम में वहां के सीएम की शह पर राहुल गांधी पर हमले करने का प्रयास हुआ और टकराव तथा बदले की यह राजनीति उन्हें और भाजपा को बहुत भारी पड़ेगी।