बिहार में SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया जारी: 35 लाख नाम कटने की संभावना, विपक्ष-सरकार आमने-सामने
पटना 16 जुलाई 2025 :
बिहार में चुनाव आयोग (EC) की Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया काफ़ी तीव्र गति से जारी है। 24 जून से शुरू हुए इस विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान में अब तक लगभग 91% मतदाता कवर हो चुके हैं। 25 जुलाई को फॉर्म सबमिशन की अंतिम तिथि निर्धारित की गई है, और 1 अगस्त को प्रारूपित मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी ।
✅ प्रगति की झलक
7.9 करोड़ अनुमानित मतदाताओं में से 6.8 करोड़ (≈86.3%) ने फॉर्म जमा किया है ।
मृत, प्रवासी और डुप्लीकेट नामों को मिलाकर लगभग 35.5 लाख नाम वोटर सूची से हटाए जा सकते हैं ।
सभी 5,683 वार्डों और 261 नगर निकायों में विशेष शिविर लगाए गए हैं, एवं तीसरी बार BLOs (लगभग 1 लाख) घर-घर फ़ॉर्म जमा कराने पहुंचेंगे ।
⚠ विवाद व चुनौती
मुद्दा विवरण : विपक्ष का आरोप INDIA गठबंधन, RJD, कांग्रेस आदि ने SIR को मतदाताओं को बाहर रखने की साजिश कहा, विशेषकर अल्पसंख्यक, प्रवासी और गरीब वर्ग को निशाना बताया ।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्पष्ट निर्देश दिया गया कि आधार, वोटर‑ID और राशन कार्ड को मान्यता दी जाए, हालांकि अदालत ने SIR प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई; अगली सुनवाई 28 जुलाई निर्धारित ।
🧳 प्रवासी और मेहमान कामगारों की दिक्कतें
तमिलनाडु समेत दूसरे राज्यों में रहने वाले लगभग 4.5 लाख बिहारियों को दस्तावेज़ीकरण और बिजली-पानी खाने-पीने जैसी मामूली खर्चों में कमीशन सहित परेशानियाँ हो रही हैं ।
कई प्रवासी वोटर के पास बिहार EPIC तो है लेकिन आधार/राशन कार्ड पर स्थानीय-पते की गड़बड़ी उन्हें सूची से बाहर कर सकती है ।
🕵 घूस कांड: आया सबूत
गया जिले में एक BLO को वोटर सूची में नाम जोड़ने के एवज में UPI के ज़रिए रिश्वत लेते पकड़ाया गया, जिससे प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठे हैं ।
🔜 अगले कदम और संभावित घटनाक्रम
25 जुलाई: फॉर्म जमा करने की आख़िरी तारीख।
28 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई।
1 अगस्त: प्रारूपित मतदाता सूची (Draft Roll) ऑनलाइन प्रकाशित होगी।
इसके बाद संभावित है कि नतीजों/फाइनल रोल पर दस्तावेज़ निम्नता और नाम हटने पर विरोध प्रदर्शन भी बढ़ सकते हैं।
📌 निष्कर्ष
बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया तीव्र और विवादास्पद है। एक तरफ यह मतदाता सूची को पारदर्शी बनाने का कदम हैं, वहीं दूसरी ओर इससे उन हिस्सों को गिराने की संभावना बनी हुई है जो साक्ष्य नहीं पेश कर पा रहे। विपक्ष इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा बता रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ संरक्षण देते हुए विधिवत दस्तावेज़ स्वीकारने की हिदायत दी है।