केरल (मानवीय सोच) केरल में राजनीतिक हत्याओं पर लगाम नहीं लग पा रहा है। राज्य में पिछले तीन महीने में 7 ऐसे लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं जो किसी पार्टी या संगठन से जुड़े हुए थे। इन हत्याओं को लेकर राज्य में आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। दूसरी ओर कुछ राजनीतिक पार्टियां अपराधियों की खुलकर सपोर्ट भी करती नजर आई हैं।
15 नवंबर को पलक्कड़ में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं के एक कथित समूह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यकर्ता संजीत (26) की पत्नी के सामने चाकू मारकर हत्या कर दी थी। इसके अलावा एक ट्वेंटी-20 कार्यकर्ता सीके दीपू पर 18 फरवरी को हमला हुआ था। हमले का आरोप CPI(M) कार्यकर्ता पर लगा था। और 21 फरवरी को माकपा कार्यकर्ता के हरिदासन (54) की कथित तौर पर आरएसएस कार्यकर्ताओं की ओर से थालास्सेरी (उत्तरी केरल) में उनके रिश्तेदारों के सामने हत्या कर दी गई थी।
राज्य में कुछ भी नया नहीं है, पिछले तीन महीनों में सात राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। कभी उत्तर केरल के कन्नूर में, आंख के बदले आंख और दांत की राजनीति राज्य के अन्य क्षेत्रों में फैल रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि असहिष्णुता की राजनीति बढ़ रही है और पार्टियां शांत स्वभाव के बजाय इन शहीदों का अधिक से अधिक उपयोग अपने कार्यकर्ताओं और प्रभुत्व पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए करती हैं।
पिछले दो साल में कोरोना वायरस महामारी की वजह से राज्य में हत्याओं की संख्या में कमी जरूर आई है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में छह हत्याएं, साल 2021 में चार हुई थी। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक पिनाराई विजयन सरकार (2016-2021) के शासन के दौरान राज्य में 32 राजनीतिक हत्याएं हुईं, जिनमें 12 राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के जिले कन्नूर में हुई थीं। लेकिन आरएसएस नेताओं का आरोप है कि कई हत्याओं को सूची में जगह नहीं मिली क्योंकि सरकार ने उन्हें राजनीतिक हत्याओं के रूप में शामिल करने से इनकार कर दिया।