नई दिल्ली (मानवीय सोच): संसद का बजट सत्र शुरू होने से चंद दिन पहले राज्यसभा सचिवालय ने उच्च सदन के सदस्यों के लिए आचार संहिता जारी कर दी है। संसद के पिछले सत्र में विपक्षी सदस्यों के पूरे सत्र के लिए निलंबन को लेकर काफी बवाल हुआ था। संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही को कई बार स्थगित करना पड़ा था।
आचार संहिता जारी करने का निर्देश उच्च सदन के अध्यक्ष एम वेंकैया नायडू ने दिया। इसमें कहा गया है कि आचार संहिता को लेकर सदन की आचरण समिति ने अपनी चौथी रिपोर्ट 14 मार्च, 2005 को पेश की थी। इसे 20 अप्रैल, 2005 को मंजूरी दी गई। समिति ने अपनी पहली रिपोर्ट में सदस्यों के लिए आचार संहिता पर विचार किया जिसे परिषद ने भी मंजूरी दे दी। सदन की प्रक्रिया व कामकाज के संचालन को लेकर कहा गया है कि सदस्यों को जनता के विश्वास को बनाए रखने की जिम्मेदारी स्वीकार करना चाहिए। उन्हें जनता की भलाई के लिए काम करने के जनादेश का निर्वाह करने के लिए लगन से काम करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि राज्यसभा के शीतकालीन सत्र 2021 और उसके पूर्व मानसून सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जमकर टकराव हुआ था। सदन के 12 विपक्षी सदस्यों को सरकार के प्रस्ताव पर सभापति वेंकैया नायडू ने पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया था।
इन 12 सदस्यों ने मानसून सत्र के अंतिम दिन कथित तौर पर सदन के सुरक्षाकर्मियों को धमकाया और उन्हें शारीरिक रूप से क्षति पहुंचाई थी। सदस्यों ने सदन के पीठासीन अधिकारी को भी घेर लिया था। उनके निलंबन का मुद्दा पूरे शीत सत्र में छाया रहा था। इतना ही नहीं शीत सत्र के अंतिम दिन तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन को भी शेष सत्रावधि के लिए निलंबित कर दिया गया था।
– आचार संहिता के प्रमुख अंश
माननीय सदस्यों को संविधान, कानून, संसदीय संस्थानों और आम जनता के प्रति उच्च सम्मान रखना चाहिए।
सदस्य संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित आदर्शों को वास्तविकता में बदलने के निरंतर प्रयास करें।
माननीयों को ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो संसद को बदनाम करे और उनकी विश्वसनीयता पर असर डाले।
संसद सदस्य के नाते जनता की भलाई के लिए हमेशा कार्यरत रहना चाहिए।
निजी व सार्वजनिक हितों के बीच टकराव न हो इसका खासतौर से ख्याल रखें।
यदि हितों में टकराव पैदा हो तो उसे इस तरह से हल करना चाहिए कि उनके निजी हित उनके सार्वजनिक कार्यों में बाधक न बनें।
सदस्यों के निजी आर्थिक हित और उनके परिवार के सदस्यों के हितों का सार्वजनिक हितों से टकराव न हो।
कभी निजी व सार्वजनिक आर्थिक हितों में टकराव हो तो उसे इस तरह से हल करना चाहिए कि सार्वजनिक हित खतरे में न पड़े।
माननीयों को ऐसे उपहार, शुल्क या पारिश्रमिक नहीं लेना चाहिए जो सदन में प्रश्न पूछने व अन्य सार्वजनिक कार्यों में बाधक बनें।
यदि उनके पास सांसद के नाते कोई गोपनीय जानकारी है, तो उन्हें नियमों के अनुसार अपने व्यक्तिगत हितों के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।