डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान प्रशासन इलाज शुल्क में करोड़ों के घपले के सभी जिम्मेदारों पर कार्रवाई करने के बजाय मामले की लीपापोती में जुट गया है। अभी तक सिर्फ संविदा कर्मचारियों पर ही कार्रवाई की गई है। सूत्रों का कहना है कि मुख्य आरोपियों को बचाने की कोशिश की जा रहे है। पूरे प्रकरण में संस्थान प्रशासन चुप्पी साधे हुए है। लोहिया में अधिकारी व कर्मचारियों ने साठगांठ कर ऑनलाइन फीस जमा करने के व्यवस्था में घपला कर करोड़ों रुपये का गबन किया था।
शिकायत के बाद घपले की जांच हुई। काफी किरकिरी के बाद काउंटर पर तैनात आधा दर्जन संविदा कर्मचारियों पर कार्रवाई कर उन्हें नौकरी से हटा दिया। कुछ कर्मचारियों पर मुकदमा दर्ज कराया और मानव सेवा प्रदाता कंपनी से करीब सवा करोड़ रुपये जुर्माना भी वसूला था। लेकिन करोड़ों की घपलेबाजी में किसी भी नियमित कर्मचारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जबकि पूरी व्यवस्था में ओपीडी से लेकर प्रशासनिक पदों पर तैनात आधा दर्जन से अधिक अधिकारी व नियमित कर्मचारी की गर्दन फंस सकती थी।
जिम्मेदारों को बचाकर संविदा कर्मचारियों पर कार्रवाई कर मामले की लीपापोती की जा रही है। हॉस्पिटल रिवॉल्विंग फंड (एचआरएफ) से मरीजों को सस्ती दर पर मिलने वाली दवाओं की भी काजाबाजारी की गई। लगभग 80 लाख रुपये की दवाओं की घपलेबाजी की गई। यह सिलसिला कई महीनों से चल रहा था। खुलासा होने के बाद 30 संविदा कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया गया। नियमित फार्मासिस्ट, एचआरएफ के अफसर व अन्य जिम्मेदारों को बचा लिया गया। मरीजों की दवा कैसे पार की गई, किन-किन लोगों ने बिल व बाउचर पास किए, कुछ खास प्रकार की महंगी दवाओं की खपत बढ़ने पर भी एचआरएफ के अफसर संजीदा क्यों नहीं हुए, इन सब बिन्दुओं को अफसरों ने नजरअंदाज कर दिया।