वरुण गांधी ने फिर साधा केंद्र पर निशाना, केवल बैंक और रेलवे का निजीकरण 5 लाख कर्मचारियों को बना देगा बेरोजगार

नई दिल्ली (मानवीय सोच) उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और 3 चरणों के लिए मतदान हो चुके हैं। जबकि 23 फरवरी को चौथे चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। प्रदेश में सभी राजनीतिक दल और नेता पूरे जोर-शोर के साथ अपनी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी के एक सांसद पिछले कई महीनों से लगातार अपनी ही पार्टी और सरकार पर निशाना साध रहे हैं। वरुण गांधी बेरोजगारी और किसानों के मुद्दे को लेकर लगातार केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधते रहते हैं।

मंगलवार को वरुण गांधी ने सरकार पर बढ़ती बेरोजगारी और निजी करण को लेकर हमला बोला है। बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने ट्वीट कर लिखा कि, “केवल बैंक और रेलवे का निजीकरण ही 5 लाख कर्मचारियों को ‘जबरन सेवानिवृत्त’ यानि बेरोजगार कर देगा। समाप्त होती हर नौकरी के साथ ही समाप्त हो जाती है लाखों परिवारों की उम्मीदें। सामाजिक स्तर पर आर्थिक असमानता पैदा कर एक ‘लोक कल्याणकारी सरकार’ पूंजीवाद को बढ़ावा कभी नहीं दे सकती।”

वहीं 4 दिन पहले वरुण गांधी ने कर्ज लेकर भागे हुए उद्योगपतियों के जरिए सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा था कि , “विजय माल्या 9000 करोड़, नीरव मोदी 14000 करोड़ , ऋषि अग्रवाल 23000 करोड़! आज जब कर्ज के बोझ तले दब कर देश में रोज लगभग 14 लोग आत्महत्या कर रहे हैं, तब ऐसे धन पशुओं का जीवन वैभव के चरम पर है। इस महा भ्रष्ट व्यवस्था पर एक ‘मजबूत सरकार’ से ‘मजबूत कार्यवाही’ की अपेक्षा की जाती है।”

वरुण गांधी वर्तमान में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से बीजेपी के सांसद हैं जबकि उनकी मां मेनका गांधी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से लोकसभा सांसद हैं। 2014 में वरुण गांधी सुल्तानपुर से सांसद थे जबकि उनकी मां पीलीभीत से सांसद थीं। वरुण गांधी पिछले 6 महीने से लगातार अपनी ही सरकार पर निशाना साध रहे हैं। प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे लेकिन वरुण गांधी ने अभी तक बीजेपी के लिए प्रचार भी नहीं किया है।

जबकि 14 फरवरी के दिन भी वरुण गांधी ने गोल्ड लोन न चुका पाने वालों के गहने की नीलामी को लेकर सरकार पर निशाना साधा था और ट्वीट कर लिखा था कि, “अपनी पत्नी के जेवर गिरवी रखते वक्त पुरुष का आत्मसम्मान भी गिरवी हो जाता है। किसी भी हिंदुस्तानी का जेवर या मकान गिरवी रखना अंतिम विकल्प होता है। महामारी और मंहगाई की दोहरी मार झेल रहे आम भारतीयों को यह असंवेदनशीलता अंदर तक तोड़ देगी। क्या यही नए भारत के निर्माण की परिकल्पना है?”

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