देश और राज्य की सरकार संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत किसी व्यक्ति या समुदाय की निजी संपत्ति को समाज या सामाजीक ढ़ाचें के नाम पर अपने नियंत्रण में ले सकती है? इस जटील सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि, सरकार सभी निजी संपत्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जब तक कि वे सार्वजनिक हित ना जुड़ रहे हों। हालांकि, भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि सरकारें कुछ मामलों में निजी संपत्तियों पर दावा कर सकती हैं। आज सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बड़ी बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा कि, सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है।
हालांकि यह भी कहा गया कि राज्य उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित के लिए हैं और समुदाय के पास हैं। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के मामले में बहुमत से अपना फैसला सुनाया है। इसके साथ ही आज CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने साल 1978 के बाद के उन फैसलों को पलट दिया है, जिनमें समाजवादी विषय को अपनाया गया था और कहा गया था कि सरकार आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले भी सकती है।
इस बाबत आज CJI ने सात न्यायाधीशों का बहुमत का फैसला लिखते हुए कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हैं और इसलिए सरकारों द्वारा इन पर कब्ज़ा भी नहीं किया जा सकता है। आज इस ऐतिहासिक बेंच में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं। इस बेंच ने करीब 6 महीने पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और तुषार मेहता सहित कई वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था