गोरखपुर : (मानवीय सोच) टार्जन, ब्रिगेडियर और गुड्डू। एक दौर में तीनों गोरखपुर विश्वविद्यालय में सिरफोड़वा गैंग के सदस्य के रूप में कुख्यात थे। शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों में इनका जबरदस्त दहशत था, न जाने कब किसका सिर फोड़ दें। तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष के इशारे पर बने इस गैंग ने कई शिक्षक-कर्मचारियों के सिर फोड़ डाले थे।
फिर वक्त बदला। गलत संगत और जोश में उठाए गए कदम ने न सिर्फ इनकी, बल्कि परिवारवालों को भी परेशानी में डाल दिया। कोर्ट-कचहरी के चक्कर में फंसे तो उलझते ही चले गए। हाथ आई तो सिर्फ बदनामी और तबाही। हालात यह हैं कि गैंग के ज्यादातर सदस्य गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। कौन जीवित है और क्या कर रहा, यह उनके साथी तक नहीं जानते।
गैंग के सदस्यों की मुश्किलें बढ़ती गईं तो कभी आगे-पीछे घूमने वाले करीबियों ने नजरें फेर लीं। जेल से छूटे तो बहुत कुछ बदल गया था। न कोई करीबी रहा न कोई मददगार। इनमें से आज कोई कोई खेती कर रहा है तो कोई छाेटी सी दुकान चलाकर किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रहा है। कुछ गुमनामी के दौर में हैं।