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जानिए यूपी में सिविल कोर्ट न होने पर सीजेआई ने क्या कहा

नई दिल्ली  (मानवीय सोच) एक रोचक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक एडवोकेट से आग्रह किया कि वो एक मामले में जनहित याचिका दायर करे। सीजेआई एनवी रमन्ना की बेंच का कहना था कि यूपी के कई जिलों में सिविल कोर्ट नहीं हैं। केंद्र से कई बार जवाब मांगा जा चुका है। लेकिन स्थिति जस की तस है। कोर्ट ने PIL दायर करने के लिए मशहूर एडवोकेट एमएल शर्मा से कहा कि वो इस मामले में एक जनहित याचिका दायर करें।

बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक हालांकि, वकील ने ये दलील दी कि वो जनहित याचिका दायर करने के लिए पहले से ही सुर्खियों में हैं। उनका कहना था कि जब भी वो ऐसी याचिका दाखिल करते हैं लोग उन्हें निशाना बनाने लगते हैं। वो पहले कई बार ऐसी याचिकाओं पर आलोचना का सामना कर चुके हैं। सीजेआई ने मुस्कुराते हुए कहा कि अबकि बार वो उनसे ऐसा करने को कह रहे हैं। वकील शर्मा ने कहा कि वो आज ही इसे तैयार करके सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश कर देंगे। दरअसल, शर्मा ने ही एक मामले की पैरवी के दौरान यूपी में सिटी सिविल कोर्ट न होने की बात कही थी।

गौरतलब है कि कोलगेट और पेगासस जैसे मामलों की पैरवी करने वाले एमएल शर्मा को सुप्रीम कोर्ट ने कई बार उनकी जनहित याचिकाओं पर फटकार लगाई है। कोर्ट ने उन पर जुर्माना भी थोपा है। सांसदों के खिलाफ आरोप लगाने पर कोर्ट ने 2015 में उन्हें शोकाज नोटिस भी जारी किया था।

दिल्ली में PIL दायर करने का चलनः हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को बेवजह याचिका दायर करने के लिए एक शख्स की खिंचाई की। अदालत ने कहा कि दिल्ली में एक चलन दिखाई पड़ता है कि लोग सड़क पर चलते हुए दाएं-बाएं देखते हैं। फिर कोई जानकारी जुटाए बगैर ही जनहित याचिका दायर कर देते हैं। ये हमारा समय खराब करते हैं।

चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने कहा कि कम से कम मसले की जानकारी तो जुटानी चाहिए। अदालत एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि शाहीन बाग इलाके में अवैध निर्माण जारी है और अधिकारी भी इसमें संलिप्त हैं। बेंच ने कहा कि इस जनहित याचिका का मकसद धमकाना और धन उगाही करना है। कोर्ट की फटकार के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने अर्जी वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे अदालत ने स्वीकार किया।

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