गाजियाबाद (मानवीय सोच) रैपिड रेल के छह डिब्बे दुहाई डिपो में जुड़ने के बाद दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ कॉरिडोर पर सिग्नल लगाने के काम ने रफ्तार पकड़ ली है। देश का पहला रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) अपनी कई विशिष्ट तकनीकी विशेषताओं के मामले में दुनिया का पहला रेल नेटवर्क हो जाएगा। सिग्नल, प्लेटफार्म स्क्रीन डोर और दूसरे कारिडोर पर रेल चली जाने के लिए जिस खास तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है, वह अभी तक दुनिया के किसी अन्य नेटवर्क में नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) ने दुनिया की कई रीजनल व अन्य रेल नेटवर्क का अध्ययन करके रैपिड रेल को अत्याधुनिक बना दिया है।
देश में इस तरह की आधुनिक सिग्नल प्रणाली का इस्तेमाल पहली बार किया जा रहा है। दावा है कि यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम के हाइब्रिड लेवल-3 तकनीक का उपयोग करने वाला यह दुनिया का पहला नेटवर्क होगा। खास बात यह है कि इस सिग्नल प्रणाली से रैपिड रेल की रफ्तार पर किसी भी मौसम (सर्दी, तूफान या घना कोहरा) पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। रैपिड रेल 160 की गति से दौड़ेगी। हालांकि इसका डिजाइन 180 किलोमीटर प्रति घंटा रखा है। जबकि औसत गति 100 किलोमीटर प्रति घंटा है। रैपिड रेल का प्राथिमक खंड साहिबाबाद से दुहाई तक 17 किलोमीटर लंबा है। इसके ज्यादातर हिस्से में ट्रैक बिछाने का काम लगभग पूरा हो गया। रैपिड रेल संचालन के लिए अब सिग्नल लगाए जा रहे हैं। रैपिड रेल संचालन के लिए यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम की हाइब्रिड लेवल-3 तकनीक को लागू किया है। लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन रेडियो पर डिजिटल इंटरलॉकिंग और स्वचालित ट्रेन ऑपरेशन का प्रयोग पहली बार किया जा रहा है। यह ट्रेन की हाई फ्रीक्वेंसी को बेतर बनाएगा। रेडियो टेक्नोलॉजी आधारित सिग्नल प्रणाली से रेल की गति का अनुमान रहेगा।
सिग्नल लगाने के बाद ट्रायल होगा
स्टेशनों पर केबल बिछाने और सिग्नल प्रणाली की जांच का काम चल रहा है। इस प्रक्रिया में सभी सिग्नल उपकरण लगने के बाद उनका परीक्षण होगा। इसके बाद ट्रेन का ट्रायल रन शुरू कराया जाएगा। उम्मीद जताई जा रही है कि अगले दो माह में सिग्नल लगाने का काम खत्म कर लिया जाएगा। इसके बाद ट्रेन का ट्रायल होगा।