उत्तर प्रदेश विधानसभा में लाया गया नजूल संपत्ति कानून फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चली तो यह बिल खत्म नहीं हुआ है. कुछ संशोधनों के साथ बिल एक बार फिर पेश किया जा सकता है. ऐसा नहीं है कि सरकार ने अचानक ही नजूल संपत्ति विधेयक तैयार और प्रस्तुत कर दिया. प्रदेश की 2 लाख करोड़ रुपये कीमत की लगभग 75,000 एकड़ नजूल संपत्ति के बंटवारे को रोकने के लिए इस विधेयक को लेकर सत्ता के गलियारों में लंबे समय से चर्चा चल रही है.
नजूल भूमि कभी भी किसी व्यक्ति विशेष की नहीं होती. आजादी से पहले और बाद में इन जमीनों के पट्टे लोगों को दिए गए. ये जमीनें तब भी मूल्यवान थीं और आज भी मूल्यवान हैं क्योंकि ऐसी जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े शहरों के बीच में स्थित है. 1993 में नजूल संपत्ति पर गठित बोहरा आयोग ने एक रिपोर्ट दाखिल कर राजनेताओं, अपराधियों, भू-माफियाओं और नौकरशाहों के संगठित गिरोह पर चिंता जताई थी