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डिजिटल अरेस्ट मामले में पश्चिम बंगाल की अदालत का बड़ा फैसला: 9 आरोपी दोषी करार, उम्रकैद की सजा

पिछले एक साल में पूरे देश में जिस साइबर क्राइम ने सबसे ज्यादा डर और चर्चा बटोरी है, वह है “डिजिटल अरेस्ट”. इस संगठित अपराध में साइबर ठग खुद को केंद्रीय एजेंसियों (जैसे CBI, NIA, या साइबर पुलिस) का अधिकारी बताकर लोगों को फर्जी वीडियो कॉल पर “डिजिटल तौर पर गिरफ्तार” कर लेते थे। पीड़ितों को धमकाकर, उन्हें कैमरे के सामने घंटों बैठाए रखते और फिर बैंक खातों से भारी रकम ट्रांसफर करवा लेते थे।

अब इस हाई-प्रोफाइल घोटाले में एक बड़ा फैसला आया है।

🔴 क्या है पूरा मामला?

पश्चिम बंगाल में हुए एक डिजिटल अरेस्ट मामले की सुनवाई के दौरान, अदालत ने 9 साइबर ठगों को दोषी पाया। इन आरोपियों ने कई लोगों को अपना शिकार बनाया और करोड़ों रुपये की ठगी को अंजाम दिया।

जांच में यह भी सामने आया कि आरोपियों ने चीन और दुबई के कुछ नेटवर्क के साथ मिलकर पूरे स्कैम को अंजाम दिया था। कोर्ट में पेश इलेक्ट्रॉनिक सबूत, कॉल रिकॉर्डिंग, वीडियो चैट स्क्रीनशॉट और पीड़ितों के बयान निर्णायक साबित हुए।

⚖ अदालत का फैसला

पश्चिम बंगाल के एक विशेष साइबर अपराध अदालत ने इस मामले में 9 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके साथ-साथ प्रत्येक आरोपी पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

📣 आपकी राय क्या होनी चाहिए?

यह फैसला एक कड़ा संदेश देता है कि साइबर अपराध अब “नरम” अपराध नहीं माने जाएंगे।

डिजिटल स्पेस में सुरक्षा की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है। आम लोगों को साइबर धोखाधड़ी के बारे में जागरूक होना होगा।

सरकार और एजेंसियों को चाहिए कि इस तरह की ठगी से निपटने के लिए विशेष हेल्पलाइन और जागरूकता अभियान चलाए जाएं।

🛡 डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचें?

कोई भी अधिकारी आपको वीडियो कॉल पर गिरफ्तार नहीं कर सकता।

सरकारी एजेंसियां कभी भी व्हाट्सएप, Zoom या Google Meet से संपर्क नहीं करतीं।

डराने-धमकाने वाले कॉल्स या मेल्स को तुरंत लोकल पुलिस या साइबर क्राइम पोर्टल पर रिपोर्ट करें:
👉 https://cybercrime.gov.in

निष्कर्ष:
यह फैसला भारतीय साइबर कानूनों और न्यायपालिका की सख्ती को दर्शाता है। उम्मीद है कि इससे साइबर अपराधियों में डर पैदा होगा और आम जनता को थोड़ी राहत मिलेगी

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