रामनगरी अयोध्या की सीमा से लगी है कुश नगरी। रामगमन पथ पर होने के साथ ही यहां रामायणकालीन कथाओं से जुड़े पौराणिक स्थल भी इसकी महत्ता को दर्शाते हैं। समय के थपेड़े सहने के साथ ही इस प्राचीन नगरी का नाम भले ही सुलतानपुर हो गया, लेकिन अब इसे पुरानी पहचान दिलाए जाने के स्वर भी मुखर हैं।
राजनीतिक रूप से भी यहां की भूमि काफी उर्वरा है। कोई यहां से चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री बना तो कोई केंद्र सरकार में मंत्री। यह जिला गांधी परिवार की राजनीति का एक अहम बिंदु भी था। जब अमेठी इस जिले का हिस्सा थी, तब दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने वाले ही ज्यादातर चेहरे राजनीति में चमकते रहे। हालांकि, अब उस गांधी परिवार (सोनिया-राहुल गांधी) का नाता यहां से लगभग खत्म हो चुका है, लेकिन दूसरे गांधी परिवार का वर्चस्व अभी भी कायम है।
मेनका के सामने होंगे आईएनडीआईए और बसपा के प्रत्याशी
पहले पुत्र वरुण गांधी और फिर मां मेनका गांधी को यहां के लोगों ने देश की सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचाने का काम किया। एक बार फिर मेनका गांधी को भाजपा ने चुनावी समर में उतारा है। इनके सामने आईएनडीआईए और बसपा के प्रत्याशी सामने होंगे। चुनावी योद्धाओं की तस्वीर स्पष्ट होने के साथ ही अब यहां सियासी ताप बढ़ने वाला है।
भारतीय जनता पार्टी ने सुलतानपुर लोकसभा सीट से ज्यादातर चर्चित चेहरों पर दांव आजमाया। इसमें वह काफी हद तक कामयाब रही। हालांकि, जब भी उसने स्थानीय नेताओं को मैदान में उतारा वे चारों खाने चित हो गए।
1991 में पहली बार खिला कमल
1991 में रामलहर के दौरान अयोध्या के संत महंत विश्वनाथ दास शास्त्री को टिकट मिला तो पहली बार यहां कमल खिला। इसके बाद 1996 व 1998 के चुनाव में देवेन्द्र बहादुर राय लगातार दो बार टिकट मिला तो वे भी जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। हालांकि, इसके बाद तीन चुनावों में भाजपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा। तीनों बार स्थानीय प्रत्याशी थे। लगातार मिली हार से सबक लेते हुए भाजपा ने 2014 में एक बार फिर बाहरी और बड़े चेहरे का प्रयोग किया। युवा नेता वरुण गांधी को उसने यहां से मौका दिया तो वह पार्टी की विजय पताका फहराने में कामयाब रहे।
2019 में दोहराया प्रयोग
2019 के चुनाव में भी भाजपा ने वही प्रयोग दोहराया। पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को चुनाव मैदान में उतारा। वह भी चुनावी नैया पार लगाने में कामयाब रहीं। अब एक बार फिर जीत की हैट्रिक लगाने के उद्देश्य से पार्टी ने सांसद मेनका गांधी पर भरोसा जताया है। सरकार और अपने काम और बड़े नाम के जरिए वह सर्वसमाज को जोड़कर चुनाव समर में हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा का यह दांव मतदाताओं को कितना रास आता है।
सपा के खाते में है सीट
आईएनडीआईए गठबंधन के चलते यह सीट समाजवादी पार्टी के खाते में है। उसने भी इस बार बाहरी और चर्चित चेहरे पर दांव लगाने की सोची। पहले अंबेडकरनगर के भीम निषाद फिर गोरखपुर के पूर्व राज्यमंत्री रामभुआल निषाद को प्रत्याशी घोषित कर दिया। रामभुआल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर से दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि, टिकट को लेकर पार्टी में यहां जिस कदर लामबंदी हुई, यह घातक साबित हो सकता है। कारण, प्रत्याशी बदलाव के चलते दूसरा गुट भी नाराज हो सकता है। बहरहाल, पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने अपना फैसला सुना दिया है। अब परिणाम क्या होागा, यह तो भविष्य तय करेगा।
एकला चलो की राह पर बसपा
वहीं, पिछली बार सपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली बसपा एकला चलो की राह पर है। उसने काफी इंतजार के बाद पिछड़ा कार्ड खेलते हुए उदराज वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया है। 2019 के चुनाव में रनर रहने वाली पार्टी को वह विजेता बना सकेंगे, इसका फैसला तो जनता-जनार्दन करेगी, लेकिन एक बात जो जरूर स्पष्ट है कि हाथी की चाल ने सपा और भाजपा की समस्या बढ़ा दी है। कुर्मी मतों में बसपा की सेंध दोनों दलों के लिए हानिकारक हो सकती है।
38 सुलतानपुर लोकसभा
कुल मतदाता -1834355
पुरुष मतदाता- 954358
महिला मतदाता- 879932
युवा मतदाता- 852179
नव मतदाता- 23699
बूथ-1991